कुल्थी (वानस्पतिक नाम- मेक्रोटाईलोमायूनीफ्लोरम) का प्रयोग दक्षिण भारत में बहुतायत में किया जाता है. इस कम ज्ञात फली का प्रयोग तरकारी और शोरबे में किया जाता है. आयुर्वेद में इसका वर्णन ‘कुल्थिका’ अथवा ‘कुल्था’ के नाम से किया गया है. इसकी फलियों के शोरबे (सूप) का प्रयोग पंचकर्म की चिकित्सा के बाद आहार के रूप में किया जाता है.
कुल्थी और आयुर्वेद
आयुर्वेदिक सिद्धांत के अनुसार कुल्थी की प्रकृति उष्ण और स्वाद कषाय होता है. इसका पाचन सरल होता है और यह पित्त और रक्त में वृद्धि करती है.
इसकी फलियों में पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. इसमें केल्शियम, फास्फोरस, लौह तत्व और प्रोटीन की अधिकता होती है. इसके पोषक तत्वों और आयुर्वेदिक गुणों की प्रकृति के कारण ही इसे मानव और पशुओं के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है.
कुल्थी से होने वाले स्वास्थ्य लाभ सामान्य सर्दी और बुखार:
आयुर्वेद के आचार्य सामान्य सर्दी, बुखार, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा में कुल्थी का शोरबा (सूप) लेने की सलाह देते हैं. यह संकुलन यानि साँस फूलने को दूर करती है और श्वसन की प्रक्रिया को आसान बनाती है. यह बुखार और सामान्य जुकाम में आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है.
पाचन:
यह उदर-वायु को कम करती है और अपच को दूर करती है. यह आंत्र-परजीवियों को समूल नष्ट करने में भी सहायता करती है.
वजन कम करना (Weight Loss) :
कुल्थी को मेद धातु (शारीरिक वसा) और कफ़ को कम करने के लिए भी जाना जाता है जो कि मोटापे के आधारीय कारण हैं. इसकी फलियों में उपस्थित पोषक तत्व जैसे कार्बोहाइड्रेट की अति सूक्ष्म मात्रा और प्रोटीन तथा रेशे की प्रचुर मात्रा में उपस्थिति के कारण यह वजन कम करने में सहायक है.
मधुमेह: (Kulthi dal for Diabetes)
नए शोधों से यह ज्ञात हुआ है कि कुल्थी मधुमेह में भी अत्यंत लाभकारी है. इसकी फलियों का नियमित प्रयोग रक्त में शर्करा की मात्रा को कम करने में सहायक है.
शुक्राणुओं की कमी: (Kulthi dal for Low Sperm Count)
ऐसे पुरुष जो शुक्राणुओं की कमी से पीड़ित हैं, उनके लिए कुल्थी का प्रयोग बहुत लाभकारी है| इसमें उपस्थित पोषक तत्व जैसे केल्शियम, फास्फोरस, लौह तत्व और अमीनो अम्ल शुक्राणुओं के निर्माण में वृद्धि करते हैं| आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुसार कुल्थी वीर्य का तरलीकरण और उसका शोधन कर, उसमें से अशुद्धि निकाल बाहर करती है| ये स्तम्भन दोष निवारण करने में भी सहायता करती है |
कम शुक्राणुओं के कारण – एक आयुर्वेद दृष्टिकोण
मासिक धर्म की अनियमितता: (Horse gram for PCOS)
ऐसी महिलाएं जिन्हें अनियमित मासिक धर्म अथवा दूषित रक्तस्त्राव की समस्या होती है उनके लिए कुल्थी की दाल विशेष लाभकारी होती है. इसकी फलियों में उपस्थित लौह तत्व हिमोग्लोबिन को बढ़ाने में सहायक है जो कि मासिक स्त्राव के समय कम हो जाता है.
कब्ज:
कुल्थी में उपस्थित रेशे कब्ज को दूर करते हैं और आंतों के संकुचन को आसान करते है.
किडनी की पथरी: Kulthi dal for kidney stones
पकी हुई कुल्थी का नियमित सेवन छोटे आकार की किडनी की पथरी को निकालने में सहायक है. वैज्ञानिक अध्ययन यह बताते है कि किडनी में केल्शियम ओक्स़ेलेट के निर्माण को रोकते है, जो कि पथरी का मुख्य कारण होता है.
कुल्थी का प्रयोग करने का तरीका: How to use Horse Gram
कुल्थी को रातभर पानी में भिगोकर पानी को सुबह फ़ेंक देना चाहिए. भीगी हुई कुल्थी की फलियों को सुबह पकाकर तरकारी और शोरबे में प्रयोग किया जा सकता है. भीगी हुई कुल्थी की अपेक्षा अंकुरित कुल्थी का प्रयोग अधिक लाभदायक होता है, क्योंकि अंकुरण उसके अस्वास्थ्यकर पौध-रसायनों को कम करके पौष्टिकता बढ़ा देता है.
कुल्थी का प्रयोग किसे नहीं करना चाहिए: (Who should not use horse gram)
गर्भवती महिला, ऐसे रोगी जिन्हें क्षय रोग हो चुका हो अथवा ऐसे व्यक्ति जो वजन बढ़ाना चाहते हों, उन्हें कुल्थी का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
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